Monday, 24 February 2020

बच्चे गए नहीं-बाल कविता-देवेन्द्र कुमार


बच्चे गए नहीं—कविता-देवेन्द्र कुमार

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शाम ढल गई

खिलखिल थम गई

बच्चे चले गए

क्या सच?

 

नहीं वे मौजूद हैं

पेंसिलों की छीलन,

कागजी गोलियों के

झगडे और मेल में

 

घर के अखाडे में

रंगों के पौ बारह

डांट डपट जा बैठी

बचपन की रेल में

 

अब बड़े बोले

करो कूडे की सफाई 

रुक रे बड़प्पन

मैंने फटकार लगाई

 

बाँध कर रखूंगा

जाने नहीं दूंगा

मैं उनमें वे मुझमें

खेलूंगा खेल मैं  

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Saturday, 8 February 2020

देखो देखो फूल खिला-बाल गीत-देवेन्द्र कुमार


देखो देखो फूल खिला—बाल गीत—देवेन्द्र कुमार

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       कूड़े पर एक फूल खिला

       सुंदर पीला फूल खिला
 
       कैसा अद्भुत फूल खिला

       खूब खिला भई खूब खिला

 

       वहाँ गली का कूड़ा पड़ता

       बदबू   छाई   रहती   है

       सब इससे बच कर चलते हैं

       जाने  कैसे  फूल खिला

      

        कोई नहीं देखने वाला

        उसे मिला है देश निकाला

        खूब गंदगी में महका है

        कितना सुंदर फूल खिला

 

                  खूब खिला भई खूब खिला

             अजब अनोखा फूल खिला 

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Sunday, 2 February 2020

बेच रहे गुब्बारे- बाल गीत-देवेन्द्र कुमार


बेच रहे गुब्बारेबाल गीत—देवेन्द्र कुमार

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बच्चे बेच रहे गुब्बारे

रंग-बिरंगे प्यारे प्यारे

फटे पुराने कपड़े पहने

कौन नए सिलवाएगा

 

सब बच्चे पढ़ने जाते हैं

छुट्टी हो तो घर आते हैं

ये क्यों सड़कों पर रहते हैं

कौन हमें समझाएगा

 

ऐसे बच्चे कितने सारे

बेघर हैं पर फिर भी प्यारे

इनका बचपन किसने छीना

कौन इन्हें बतलाएगा

 

कुछ सड़कों पर कुछ ढाबों में

घर में नौकर, कुछ खेतों में

पुस्तक, खेल, खिलौने गायब

वापस कौन दिलाएगा

 

क्यों न हम सब मिलकर सोचें

ये क्यों अपना बचपन बेचें

कहां छिपी हैं इनकी खुशियां

कौन खोजकर लाएगा

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