Thursday, 24 January 2019

हंसने का स्कूल-बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


हंसने का स्कूल—बाल गीत—देवेन्द्र कुमार
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यह है हंसने का स्कूल

 
जल्दी आकर नाम लिखाओ

पहले हंसकर जरा दिखाओ

बच्चे जाते रोना भूल

यह है हंसने का स्कूल

 

पहले सीखो खिलखिल खिलना

बढ़कर गले सभी से मिलना

सारे यहीं खिलेंगे फूल

यह है हंसने का स्कूल

 

झगड़ा-झंझट और उदासी

इनको तो हम देंगे फांसी

हंसी खुशी से झूलमझूल

यह है हंसने का स्कूल।

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कच्ची नींद : पक्की नींद--बाल गीत--देवेन्द्र पक्की कुमार


कच्ची नींद-पक्की नींदबाल गीत -–देवेन्द्र कुमार

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कितनी कच्ची मां की नींद

हौले से जो कोई बोले

भूले से भी बत्ती खोले

झट उठकर सब पर चिल्लाएं

चुरमुर पापड़ उनकी नींद

 

पापाजी की पक्की नींद

चाहे सिर पर बजें नगाड़े

ठुक ठुक कोई कीलें गाड़े

खुर खुर खुर खुर करते रहते

कैसी चिप्पक उनकी नींद

 

अपनी खेल खिलाड़ी नींद

पढ़ते पढ़ते हम सो जाते

सब जब सोते हम उठ जाते

सुबह सवेरे कान पकड़कर

घर से भागे नटखट नींद

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Wednesday, 23 January 2019

बूढा बरगद-बूढ़े बाबा :बाल गीत: देवेन्द्र कुमार


बूढ़ा बरगद: बूढ़े बाबाबाल गीत-देवेन्द्र कुमार   


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बरगद पर हैं कई घोंसले

जाने कितने पंछी रहते

हम पर बाबाजी की छाया

भाग्यवान हमको सब कहते

 

दाढ़ी श्वेत धवल बाबा की

लटक रही बरगद की मूंछें

अपनी हर मुश्किल का हल हम

जा कर बाबाजी से पूछें

 

प्यार, हंसी, गुस्से की गरमी

ये रंग बाबा रोज दिखाते

बरगद की छाया में बच्चे

खूब खेलते शोर मचाते

 

सांझ ढले बरगद के नीचे

अपने बाबा दीप जलाते

हम सबकी फरमाइश पर फिर

सरस कथाएं रोज सुनाते

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Thursday, 17 January 2019

दिल्ली के रिक्शा वाले--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


दिल्ली के रिक्शावाले—बाल गीत—देवेन्द्र कुमार

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घर बंगाल, बिहार, उड़ीसा

उधर हिमाचल, मध्य प्रदेश

दूर दूर से चलकर आए

ये दिल्ली के रिक्शावाले

 

पहियों के संग पहिए बनकर

सारा दिन हैं पैर घुमाते

मेहनत पीते, मेहनत खाते

ये दिल्ली के रिक्शावाले

 

सर्दी में भी बहे पसीना

कैसा मुश्किल जीवन जीना

सच्चे, अच्छे परदेसी हैं

ये दिल्ली के रिक्शावाले

 

मुनिया, बाबा, अम्मां, भैया

सबको भूल चले आए हैं

न जाने कब वापस जाएं

ये दिल्ली के रिक्शावाले

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Monday, 14 January 2019

गपोड़ शंख--बाल गीत-देवेन्द्र कुमार


गपोड़शंखबाल गीत—देवेन्द्र कुमार


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पेड़ों को पैर दूंगा

फूलों को पंख

और क्या करूं बोलो

मैं हूं गपोड़शंख

 

बस्ते से भाग गई

मुश्किल पढ़ाई

इसमें रख दिए मैंने

खेल-कूद भाई

 

मम्मीजी कहती हैं

मुझको गपोड़ी

इसमें भी गप्प

मिली है थोड़ी थोड़ी 

 

कैसी कही कैसी रही

सच कहना भाई

हम सबने खाई जो

गप्प की मिठाई।

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