बूढ़ा बरगद: बूढ़े बाबा
बरगद
पर हैं कई घोंसले
जाने
कितने पंछी रहते
हम
पर बाबाजी की छाया
भाग्यवान
हमको सब कहते
दाढ़ी
श्वेत धमल बाबा की
लटक
रही बरगद की मूंछें
अपनी
हर मुश्किल का हल हम
जाकर
बाबाजी से पूछें
प्यार, हंसी, गुस्से की गरमी
ये
रंग बाबा रोज दिखाते
बरगद
की छाया में बच्चे
खूब
खेलते शोर मचाते
सांझ
ढले बरगद के नीचे
अपने
बाबा दीप जलाते
हम
सबकी फरमाइश पर फिर
सरस
कथाएं रोज सुनाते