Monday, 31 December 2018

नया साल है--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


नया साल है—बाल गीत—देवेन्द्र कुमार

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नए साल में वह सब होगा

नहीं हुआ जो गए साल में

 

भूखे पेट न कोई सोए

दुख से कोई आंख न रोए

सर्दी में न कोई बेघर

नए साल में

 

बाढ़ या सूखा या बीमारी

कैसी भी कोई लाचारी

नहीं किसी से कैसा भी डर

नए साल में

 

आओ मिलकर कर लें पूरे

जो भी सपने रहे अधूरे

रहे अंधेरा ना कोई घर

नए साल में

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Friday, 28 December 2018

उनका मौसम-बाल गीत-देवेन्द्र कुमार


  उनका मौसम—बाल गीत—देवेन्द्र कुमार


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गरमी को पानी से धोएं

बारिश को हम खूब सुखाएं

जाड़े को फिर सेंक धूप में

अपनी दादी को खिलवाएं

 

कैसा भी मौसम आ जाए

उनको सदा शिकायत रहती

इससे तो अच्छा यह होगा

उनका मौसम नया बनाएं

 

कम दिखता है, दांत नहीं हैं

पैरों से भी चल न पातीं

बैठी-बैठी कहती रहतीं

न जाने कब राम उठाएं

 

शुभ-शुभ बोलो प्यारी दादी

दर्द भूल कर हंस दो थोड़ा

आंख मूंदकर लेटो अब तुम

बच्चे सुंदर लोरी गाएं

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Saturday, 22 December 2018

चूहा किताबें,,,--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


चूहा किताबें....बाल गीत—देवेन्द्र कुमार

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चूहा किताबें पढ़ता है

 

पढ़ते पढ़ते खाता है

जाने किसे सुनाता है

हर पुस्तक पर चढ़ता है

चूहा किताबें पढ़ता है

 

 

अभी भगाया, झट फिर आया

इसने शब्दकोश है खाया

ज्ञान इसी से बढ़ता है

चूहा किताबें पढ़ता है

 

बार-बार पिंजरा लगवाया

फिर भी चंगुल में न आया

मेरा पारा चढ़ता है

चूहा किताबें पढ़ता है।

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Monday, 17 December 2018

फूल महकते हैं--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


फूल महकते हैं—बाल गीत—देवेन्द्र कुमार

 

पापाजी जब हंसते हैं

मम्मी खुश हो जाती हैं

मौसम बढ़िया लगता है

 

दोनों पास बुलाते हैं

ढेरों प्यार लुटाते हैं

जो भी मांगूं मिलता है

 

मम्मी सुंदर दिखती हैं

पापा अच्छे लगते हैं

घर में फूल महकते हैं।

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बर्तन गाते हैं--बाल गीत --देवेन्द्र कुमार


 बर्तन गाते हैंबाल गीत—देवेन्द्र कुमार


सुनो सुनो बर्तन गाते हैं


थाली चम्मच और कटोरी


चमचम चमचम गोरी गोरी

पहले मम्मी प्यार जताएं

तब उनमें खाना खाते हैं

 

बहुत स्वाद थी खीर बनाई

ऊपर उसके पड़ी मलाई        

चाट गए चटखारे लेकर

सचमुच बहुत मजे आते हैं

 

बरतन अब फिर से नहाएंगे

टन टन टिन गाना गाएंगे

मम्मी के हाथों में रहकर

सुबह शाम मुंह चमकाते हैं

 

सुनो-सुनो बरतन गाते है

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Saturday, 15 December 2018

छुट्टी का स्कूल--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


छुट्टी का स्कूलबाल गीत—देवेन्द्र कुमार


 

यह है छुट्टी का स्कूल

 

यहां किताबें छिपकर रहतीं

मम्मी पढ़ने को न कहतीं

हरदम खेलकूद का मौसम

हुए खुशी से झूलमझूल

 

गप्पों का ले मिर्च-मसाला

छुट्टी के पापड़ पर डाला

खाते हुए धूप में दौड़े

लगे बदन पर जैसे फूल

 

होमवर्क हो गया हवाई

जैसे उसको मिली दवाई

पढ़ने के कमरे की चाबी

रखकर कहीं गए हम भूल 

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सडकों की महारानी--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


सड़कों की महारानी—बाल गीत—देवेन्द्र कुमार


 

सुनो कहानी रानी की

सड़कों की महारानी की

 

झाड़ू लेकर आती है

कूड़ा मार भगाती है

सड़कें चमचम हो जातीं

वह प्यारी है नानी की

 

धूल पुती है गालों पर

जाले उलझे बालों में

फिर भी हंसती रहती है

बात बड़ी हैरानी की

 

आओ उसके मित्र बनें

उसकी अच्छी बात सुनें                       

बस कूड़ा न फैलाएं

शर्त यही महारानी की

 

सुनो कहानी रानी की

सडकों की महारानी की===

 

Wednesday, 12 December 2018

खटमिठ चूरन--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


खटमिठ चूरनबाल गीत—देवेन्द्र कुमार 


 

मैंने बाबाजी से पूछा

उनका बचपन कैसा था

दोनों गाल फुलाकर बोले

खटमिठ चूरन जैसा था

 

सारा दिन पेड़ों पर चढ़ता

कभी-कभी थोड़ा सा पढ़ता

घर का कोई काम ना करता

मन गुब्बारे जैसा था।

 

रोज नदी पर नहाने जाता

जंगल में फिर फुर्र हो जाता

शाम ढले छिप घर में आता

लगता चोरी जैसा था

 

जैसे मैं हूं तेरा बाबा

वैसे ही थे मेरे बाबा

जैसा तू है वैसा मैं था

बचपन बच्चों जैसा था।

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Tuesday, 11 December 2018

पंख लगायें--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


पंख लगाएं—देवेन्द्र कुमार---बाल गीत

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आओ रोटी एक बनाकर

उसको मिल फैलाते जाएं

जैसे एक विशाल पतंग हो

एक नहीं हम कई बनाएं
 

 पंख लगाकर आसमान में

चाहे जहां कहीं ले जाएं

डोरी इनकी रखें हाथ में

आओ रोटी-पतंग उड़ाएं

 
कहते भूख बहुत दुनिया में

लोग रोज भूखे रह जाएं

उनके बीच उतारें रोटी

वे सब अपनी भूख मिटाएं

 
सब पूछें यह कैसे होगा

ऐसी रोटी कौन बनाए

भूखा-बेघर रहे न कोई

ऐसी दुनिया नई बनाएं।

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Sunday, 9 December 2018

खटमिठ चूरन--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


खटमिठ चूरनबाल गीत—देवेन्द्र कुमार 


 
मैंने बाबाजी से पूछा

उनका बचपन कैसा था

दोनों गाल फुलाकर बोले

खटमिठ चूरन जैसा था

 

सारा दिन पेड़ों पर चढ़ता

कभी-कभी थोड़ा सा पढ़ता

घर का कोई काम ना करता

मन गुब्बारे जैसा था।

 

रोज नदी पर नहाने जाता

जंगल में फिर फुर्र हो जाता

शाम ढले छिप घर में आता

लगता चोरी जैसा था

 

जैसे मैं हूं तेरा बाबा

वैसे ही थे मेरे बाबा

जैसा तू है वैसा मैं था

बचपन बच्चों जैसा था।

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गड़बड़झाला--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


गड़बड़झालाबाल गीत—देवेन्द्र कुमार


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आसमान को हरा बना दें

धरती नीली पेड़ बैंगनी

सागर मीठा चंदा काला

फिर क्या होगा

-गड़बड़झाला!

 
दादा मांगें दांत हमारे

रसगुल्ले हों खूब करारे

चाबी अंदर बाहर ताला

फिर क्या होगा

-गड़बड़झाला!

दूध गिरे बादल से भाई

तालाबों में पड़ी मलाई

मक्खी बुनती मकड़ी जाला

फिर क्या होगा

-गड़बड़झाला!

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Saturday, 8 December 2018

गुब्बारे--बाल गीत--देवेन्द्र कुमार


गुब्बारे—बाल गीत—देवेन्द्र कुमार


 

कितने सुन्दर हैं गुब्बारे

रंग-बिरंगे उड़ते तारे

मैले कपड़ों वाली लड़की

बेच रही देखो गुब्बारे

 

ले लो मुन्नी, ले लो भैया

रोटी तभी तो देगी मैया

भूखी आंखों वाली लड़की

बेच रही देखो गुब्बारे

 

चाहे कैसा भी मौसम हो

सर्दी ज्यादा हो या कम हो

नंगे पैरों वाली लड़की

बेच रही देखो गुब्बारे

 

ले लो उसके सब गुब्बारे

रंग-बिरंगे प्यारे, प्यारे

अपनी बहना जैसी लड़की

बेच रही देखो गुब्बारे

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Monday, 3 December 2018

गायब गायब--पर्यावरण कथा--देवेन्द्र कुमार


 गायब-गायबदेवेन्द्र कुमार—कहानी बच्चों के लिए


किरण बाला फूलों के बिना जिन्दा नहीं रह सकती थी. और सारे फूलों को किसी ने जादू की छड़ी घुमा कर जैसे हवा में गायब कर दिया था. क्या करेगी किरण बाला?क्या उपाय था गायब हुए फूलों को वापस लाने का?


 


   उसका नाम था राजकुमारी किरणबाला। राजा सर्वजीत और रानी सुनयना की इकलौती बैटी। पर माँ-बाप उसे फूलपरी के नाम से पुकारा करते थे। कारण था किरणबाला का फूलों से प्यार। वह फूलों से इतना प्यार करती थी कि किसी की समझ में नहीं आता था कि उसे कैसे संतुष्ट करें। सुबह नींद से जागने से लेकर सोने तक वह हर समय फूलों की ही बातें करती थी। उसका मूड ठीक रखने के लिए उसके आसपास हर समय ताजे, सुगंधित फूल सजे रहते थे।

   किरण बाला की पोशाक पर भी तरह-तरह के फूलों के डिजाइन बने होते थे। उसके महल को खासतौर पर खिले हुए कमल पुष्प के आकार में बनाया गया था। उसके आस-पास काम करने वाली सेविकाओं को भी फूलों के डिजाइन वाले परिधान पहनने का आदेश था। पूरे राज्य में सबसे ज्यादा महत्व मालियों का था जो हर समय फूलों की सार-संभाल में लगे रहते थे। राजा का सख्त आदेश था कि कोई फूल मुरझाने पाए। अगर कभी कहीं कोई मुरझाया या झरा हुआ फूल दिखाई दिया तो वहाँ काम करने वाले मालियों को कड़ा दंड देने की व्यवस्था थी।

    लेकिन राजा को यह पता नहीं था कि फूल अपने मौसम पर खिलते थे। एक दिन के बाद फूल मुरझाते भी थे और झर भी जाते थे। लेकिन राजा से यह सच्चाई हमेशा छिपाई जाती थी। रात ही रात में झरे हुए या मुरझाए फूलों को साफ करके कहीं और डाल दिया जाता था-- किसी ऐसी जगह जहाँ राजा-रानी और राजकुमारी किरणबाला की नजरें कभी पहुँच सकें।

    बरसात या भयानक गर्मियों में अथवा कड़ी सर्दी में जब फूल नजर नहीं आते थे तब राजा के कोप से बचने का एक बड़ा अनोखा उपाय खोजा गया थाराजा के सामने ढेर के ढेर आवेदन पत्र रखे जाते। पूछने पर मंत्री कहते—“महाराज, ये आवेदन हमें फूलों की क्यारियों में मिले हैं। आवेदन में लिखा होता-हमें परीलोक मे बुलाया गया है। वहाँ फूलों का विशाल उत्सव होगा। उसमें पूरी दुनिया के फूल उपस्थित होंगे। इसलिए हम परीलोक जा रहे हैं।

     राजा परीलोक का नाम सुनकर चुप हो जाता। क्योंकि हर आदमी कहता था कि राजकुमारी किरणबाला को परियों का वरदान है इसीलिए वह ताजे फूलों की तरह महकती है। राजा भी चापलूसों की ऐसी चिकनी-चुपड़ी बातों से प्रसन्न रहता था। उसे फूलों के बारे में जो कुछ भी बताया जाता था, वह सत्य से एकदम उलट होता था। उसने खुद सच जानने की कोशिश कभी नहीं की। वैसे भी उसे इन बातों के लिए समय ही कहाँ था। राजा के आसपास रहने वाले दरबारी और मंत्री उसे हर समय नाचरंग में गुम रखने की चालें चलते रहते थे, ताकि उसे और कुछ दिखाई ही दे। या तो नाचरंग

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या फिर राजकुमारी किरणबाला के लिए नए से नए फूलों की चर्चा चलती थी। जैसे राज्य में इन दो चीजों के अतिरिक्त और किसी का अस्तित्व ही नहीं था।

    वर्ष में जब किरणबाला का जन्मदिन समारोह मनाया जाता था, उस समय तो फूलों की तथा उनकी देखभाल करने वाले मालियों की आफत ही जाती थी। वैसे भी राजकुमारी के जन्मदिन की तैयारियाँ पूरे वर्ष चलती रहती थीं। जन्मदिन के समारोह में पूरा नगर जैसे फूलनगर बन जाता था। हर कहीं फूलों की सजावट दिखाई देती थी। जिन मार्गों पर राजकुमारी किरणबाला की शोभा यात्रा गुजरती थी, वहाँ हर कहीं सुंदर फूलों के गलीचे बिछा दिए जाते थे। मार्ग के दोनों ओर खड़े लोग राजकुमारी के रथ पर फूलों की बौछार करते हुएराजकुमारी अमर रहे’ के नारों से आकाश गुंजाते रहते थे।

    राजकुमारी के साथ राजा-रानी भी होते थे। उन्हें यह सब अत्यंत गौरवपूर्ण और भव्य लगता था। राजकुमारी का पुष्प सज्जित रथ फूलों के गलीचे को रौंदते हुए निकल जाता था। फिर सब कुछ शांत हो जाता था। रह जाते थे सब तरफ फैले दबे-कुचले फूल और हवा में तैरती सुगंध। राज्य के छोटे-बड़े अधिकारी अपनी सफलता पर खुश होते थे, लेकिन मालियों की आँखों में आँसू होते थे। कड़ी मेहनत से उगाए गए फूलों को राजकुमारी का रथ बेदर्दी से कुचलता हुआ चला जाता था। बाद में कुचले और मुरझाए हुए फूलों से सुगंध की जगह दुर्गंध उठने लगती थी। फिर सफाई का काम शुरु होता था। और इस तरह नष्ट हुए फूलों को शहर से दूर जंगल में गड्ढों में दबा दिया जाता था या एक गुफा में फेंक दिया जाता था, जो शहर से दूर निर्जन में थी।

    समारोह के बाद कुछ दिन तक ताजे फूल दूसरे शहरों से मंगवाए जाते थे, क्योंकि नगर के सारे उद्यानों के फूल तो राजकुमारी के जन्मदिन समारोह की चकाचौंध में नष्ट कर दिए जाते थे। और ताजे फूल तब तक मंगवाए जाते रहते थे, जब तक मालियों की मेहनत नए फूलों का फिर से नहीं उगा देती थी। लेकिन इस बार कुछ विचित्र हुआ। मालियों की टोलियाँ फूलों की क्यारियों मे रात-दिन मेहनत करती रहीं पर पौधों पर फूल आए ही नहीं। पूरे राज्य में जैसे फूलों का अकाल पड़ गया। दिन बीतते गए पर फूलों के पौधे सूने ही रहे। लगा जैसे किसी ने जादू के जोर से सब पौधों से सारे फूल   गायब कर दिए थे।

   राजा से यह बात ज्यादा दिन तक छिपाई नहीं जा सकी। राजा को फूल गायब होने की खबर मिली तो वह बहुत नाराज हुआ। उसने सोचा—“यह मालियों की शरारत है, फिर राजा के आदेश पर राज्य के सब मालियों को जेलों में डाल दिया गया। नए मालियों को पौधों की देखरेख पर लगा दिया गया। दूसरे राज्यों से फूलों के नए पौधे मंगवाकर लगवाए गए, पर कुछ हुआ। सारे राज्य में घूमने पर एक भी फूल नजर नहीं आता था। राजकुमारी किरणबाला फूलों के बिना जैसे जीवित ही नहीं रह सकती थी। वह बीमार हो गई।

    फूलों की चिंता में एक नई समस्या और जुड़ गई। राजुकमारी को कैसे जल्दी से जल्दी स्वस्थ किया जाए, इसके लिए निपुण वैद्यों की पूरी टोली महल में तैनात कर दी गई। राजकुमारी को कोई गंभीर बीमारी थी, वह ताजे फूल मिलने के कारण अस्वस्थ हो गई थी। उसकी तो पूरी दिनचर्या ही ताजे फूलों की सुगंध पर आधारित थी।

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     कई दिन इसी तरह बीत गए। राजधानी के हर पौधे से फूल गायब हो गए थे। ऐसा क्यों हो रहा था, यह बात किसी की समझ में नहीं रही थी। उन्हीं दिनों की बात है, एक चरवाहा जंगल में अपने रेवड़ को चरा रहा था। तभी जोर की बारिश गई। बारिश से बचने के लिए चरवाहा अपने रेवड़ सहित पास की गुफा में चला गया। गुफा बहुत बड़ी और ऊँची थी। इतनी विशाल कि उसमें हजारों लोग समा जाएं। एकाएक चरवाहे की नाक में फूलों की सुगंध आई। वह आश्चर्य से इधर-उधर देखने लगा। इससे पहले भी चरवाहा कई बार बारिश और आंधी से बचने के लिए अपने रेवड़ को गुफा में ला चुका था, पर ऐसी सुगंध तो उसे कभी महसूस नहीं हुई थी।

    चकित होने के साथ-साथ वह डर भी गया। क्योंकि वह अकेला था और इससे पहले उसने ऐसी विचित्र सुगंध को महसूस नहीं किया था। गुफा बहुत बड़ी थी जो दूसरे छोर पर एक घाटी में खुलती थी। चरवाहा गुफा के दूसरे छोर की तरफ चला गया। वहाँ से उसने देखा जहाँ तक नजर जाती थी हर तरफ फूलों का सतरंगी गलीचा बिछा हुआ नजर रहा था। चरवाहा तुरंत रेवड़ के साथ अपने गाँव की तरफ चल दिया, हाँलांकि बारिश अभी तक पूरी तरह रुकी नहीं थी। पर चरवाहा डरा हुआ था और इस विचित्र घटना के बारे में जल्दी से जल्दी गाँव वालों को बताना चाहता था।

    चरवाहे ने जो कुछ मुखिया को बताया उसे राजधानी के कानों तक पहुँचने में ज्यादा समय नहीं लगा। क्योंकि समाचार था ही इतना विचित्र और चौंकाने वाला। आखिर गुफा में फैली सुगंध का क्या रहस्य था? और गुफा के पीछे वाली घाटी में इतने फूल एकाएक कैसे खिल उठे थे, जबकि पहले कभी ऐसा नहीं देखा गया था।

    पूरे राज्य में इस समाचार ने सनसनी फैला दी। राजा के आदेश पर कुछ घुड़सवार खोज के लिए गुफा में जा पहुँचे। गुफा में प्रवेश करने से पहले उन्होंने कई मशालें जला लीं ताकि गुफा के अँधेरे में साफ-साफ देखा जा सके। मशालों की कंपकंपाती रोशनी में अद्भुत दृश्य दिखाई दिया--उस गुफा की ऊँची छत के पास असंख्य फूल हवा में तैरते दिखाई दिए। सुगंध उन्ही फूलों से रही थी। यह कैसा  अजूबा था! भला फूल हवा में कैसे तैर सकते थे। क्या किसी ने जादू की अदृश्य डोरियों से फूलों को छत से लटका दिया था? यह साधारण घटना नहीं थी-जरूर कोई गहरा चक्कर था। उस गुफा के दूसरे छोर से घाटी में खिले फूल भी नजर रहे थे।

    यह विचित्र समाचार राजा को मिला तो वह रानी सुनयना और बेटी राजकुमारी किरणबाला के साथ तुरंत गुफा में पहुँचा। साथ में सैनिकों का दस्ता भी था। लेकिन जैसे ही राजा, रानी और राजकुमारी गुफा में घुसे, सुगंध आनी बंद हो गई। छत के पास तैरते सारे फूल भी गायब हो गए।

    राजा चिल्लाया—“यह क्या बकवास है, यहाँ तो कोई सुगंध नहीं रही है, ही छत से लटकते फूल दिखाई दे रहे हैं। मुझसे झूठ क्यों बोला?”

     सैनिक दस्ते के मुखिया ने कहा—“महाराज, मैं सौंगध खाकर कहता हूँ जब मैं यहाँ आया तो गुफा में सुगंध थी और छत के पास तैरते बहुत सारे फूल भी दिखाई दे रहे थे। मैं कह नहीं सकता कि एकाएक यह क्या हो गया। तभी राजा की नजर गुफा के दूसरे मुहाने से दिखती घाटी में जा टिकी। वहाँ बहुत सारे फूल खिले हुए थे।

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     राजकुमारी किरणबाला ने कहा—“पिताजी, हमें घाटी में चलना चाहिए, मैं इतनी दूर से भी वहाँ बहुत सारे फूल खिले देख रही हूँ।

     राजा ने सैनिकों को संकेत दिया तो वे आगे-आगे चल दिए, पीछे पीछे राजा का परिवार था। फूलों को देखकर राजकुमारी बहुत उत्साहित हो उठी। वह दौड़कर फूलों के बीच जा खड़ी हुई। लेकिन यह क्या! देखते-देखते घाटी में सारे फूल अदृश्य हो गए। राजकुमारी पागलों की तरह इधर-उधर देख  कर बड़बड़ाने लगी—“अरे, फूल कहाँ गए! अभी तो कितने सारे फूल खिले हुए थे, लेकिन पलक झपकते ही कहाँ गायब हो गए।

      राजा भी हैरान था। वह भी नहीं समझ पा रहा था कि एकाएक सारे फूल कहाँ गायब हो गए। सैनिकों के साथ राजपरिवार हैरान-परेशान खड़ा था। राजा को आशा थी कि शायद अदृश्य हो गए फूल फिर से दिखाई देंगे। राजा, रानी और किरणबाला को घाटी में खड़े-खड़े काफी समय बीत गया था पर गायब हुए फूल फिर से प्रकट हुए।

     राजकुमारी बुदबुदाई—“क्या फूलों को मुझसे दुश्मनी है। भला मैंने फूलों का क्या बिगाड़ा है। मैं तो उन्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती हूँ, फिर ऐसा क्यों हुआ कि मेरे आते ही फूल अदृश्य हो गए। किरण बाला उदास भाव से इधर-उधर देखती रही पर फूल फिर दिखाई दिए। आखिर राजा ने सैनिकों को लौटने का इशारा किया और गुफा के मुहाने की तरफ चल दिए। गुफा के दरवाजे पर पहुँचकर राजा ने पीछे मुड़कर देखा तो हैरान रह गया। घाटी में सब तरफ फूल ही फूल दिखाई दे रहे थे। यह देखकर राजा के कदम रुक गए। उसने रानी और राजकुमारी से भी यह विचित्र दृश्य फिर से देखने को कहा और फिर घाटी की ओर वापस चल दिया। पीछे-पीछे रानी और किरणबाला भी थी-लेकिन जैसे ही ये तीनों फूलों के निकट पहुँचे, फूल एकाएक फिर से गायब हो गए।

     अब तो राजा को सचमुच विश्वास हो गया कि फूल उसके परिवार से नाराज हो गए हैं, वरना ऐसा कैसे होता कि जब वे पास जाते थे तो फूल गायब हो जाते थे और जब वे पीछे हटते थे तो फूल फिर से प्रकट हो जाते थे। राजा, रानी और राजकुमारी उदास भाव से वापस लौट चले। गुफा के द्वार पर पहुँचकर राजा ने मुड़कर देखा तो फिर वही दृश्य दिखाई दिया। घाटी में यहाँ से वहाँ तक फूल ही फूल नजर रहे थे।

     अब राजा के मन में कोई संदेह नहीं रह गया था कि फूलों के देवता या फूलों की परी उनसे नाराज हैंपर फूलों की नाराजगी का कारण उन लोगों की समझ में नहीं रहा था। क्योंकि राजा, रानी और उनकी बेटी तो यही मानकर बैठे थे कि फूलों से जितना वे प्यार करते हैं, उतना प्यार और कोई कर ही नहीं सकता।

     राजा का रथ सूनी सड़कों से गुजरता हुआ महल में चला आया। कहीं एक भी फूल नजर नहीं रहा था। उस रात देर तक तीनों को नींद नहीं आई। तीनों एक ही बात सेाच रहे थेआखिर फूल उनसे नाराज क्यों हैं? और उनकी नाराजी दूर करने का क्या उपाय है। इसी तरह उधेड़बुन में फंसे हुए राजा, रानी और किरणबाला देर तक छटपटाते रहे। फिर नींद आई तो सही, पर राजकुमारी को एक डरावना सपना आया और वह घबराकर उठ बैठी। उसका सारा शरीर कांप रहा थासचमुच उसने एक

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 भयानक सपना देखा था। वह कमरे से निकली और दौड़ती हुई माँ के पास पहुँची। वहाँ राजा पहले ही रानी को अपने सपने के बारे में बता रहा था, जो उसने अभी अभी देखा था। घबराई किरणबाला को देखकर राजा-रानी चौंक पड़े। पूछने लगे कि वह इस तरह घबराई हुई क्यों है?

    तब किरणबाला ने सपने के बारे में बताया जो उसने अभी-अभी देखा था। वह बोली—“पिताजी, सपना बहुत डरावना थामैंने देखा मैं फूलों से सजे रथ में कहीं जा रही हूँ। जहाँ तक नजर आती है सब तरफ फूल-फूल ही बिछे हैं। तभी रोने-चीखने की आवाजें आने लगती हैंराजकुमारी, तुम हमारी हत्या क्यों कर रही हो? हम फूलों को क्यों कुचल रही हो। तुम रोज ही ऐसा करती हो। तुम  एक बुरी राजकुमारी हो।

       सुनकर राजा चौंक पड़ा। “बेटी, बिल्कुल यही सपना तो मैंने देखा है अभी-अभी। हम दोनों को  एक ही सपना आया है। क्या सच में हम फूलों के हत्यारे हैं। हमारे रथों के पहियों के नीचे कितने फूल कुचले जाते हैं। हर स्थान को ताजे फूलों से सजाया जाता है जिन्हें बाद में फेंक दिया जाता है। शायद इसीलिए फूल हमसे नाराज होकर अदृश्य हो गए हैं।

       हाँ, पिताजी, घाटी के फूल भी हमारे वहाँ पहुँचते ही अदृश्य हो गए थे।

        बेटी, हमें फूलों को मनाना होगा। तभी वे हमारे पास लौटकर आएँगे। राजा ने कहा और मन ही मन कुछ सोचने लगा। वह अपने कमरे में देर तक चहलकदमी करता और सोचता रहा।

     दिन निकलते ही उसने राज्य के बड़े अधिकारियों को बुला भेजा। कहा—“सब मालियों को कैद से मुक्त कर दिया जाए। उनका कोई दोष नहीं है। आज के बाद किसी फूलदार पौधे से एक भी फूल तोड़ा जाए। माली केवल जमीन पर गिरे फूलों को उठाया करेंगे।

     लेकिन राजकुमारी का श्रृंगार , सड़कों पर फूलों की सजावट... मंत्री अपनी बात पूरी कर सका। राजा ने बीच में ही टोक दिया...यह सब आज से बंद किया जाता है। फूल केवल देव मंदिर में चढ़ाए जाएँगे।

     राजा के अधिकारी तो बहुत समय से ऐसा सोचते थे, पर राजा के सामने मुँह खोलने का साहस   किसी में था। राजा के आदेश पर तुरंत अमल हुआ। बंदी मालियों को कैद से रिहाई मिली। उन्हें राजा के नए आदेश बता दिए गए। सुनकर माली बहुत प्रसन्न हुए। माली तुरंत पौधों के पास दौड़ गए, जो इतने समय से देखभाल होने के कारण नष्ट होने लगे थे।

    एक-दो दिन बाद ही प्रभाव दिखाई देने लगा-पौधों पर फूल नजर आने लगे। यह शुभ सूचना राजा को मिली तो वह उद्यान में पहुँचाराजकुमारी भी साथ थी। उसने कहा—“पिताजी, फूलों ने हमें क्षमा कर दिया। अब हम पुरानी गलती कभी नहीं दोहराएँगे।“

     कुछ दिन बात राजकुमारी का जन्मदिन समारोह नए ढंग से मनाया गया। राजा के आदेश पर रंगीन कागज कपड़े की कतरनों से फूल बनाए गए और उनसे सजावट की गई। सब तरफ पौधों पर फूल अपनी महक बिखेर रहे थे। फूलों की हत्याए बंद हो गईं थीं । (समाप्त)
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